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आप॑: पृणी॒त भे॑ष॒जं वरू॑थं त॒न्वे॒३॒॑ मम॑ । ज्योक्च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āpaḥ pṛṇīta bheṣajaṁ varūthaṁ tanve mama | jyok ca sūryaṁ dṛśe ||

पद पाठ

आपः॑ । पृ॒णी॒त । भे॒ष॒जम् । वरू॑थम् । त॒न्वे॑ । मम॑ । ज्योक् । च॒ । सूर्य॑म् । दृ॒शे ॥ १०.९.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:9» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:7 | मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) हे जलो ! (मम तन्वे) मेरे शरीर के लिये (वरूथं भेषजम्) रोगनिवारक औषध को (पृणीत) दो-प्रदान करो, जिससे कि (ज्योक् च सूर्यं दृशे) सूर्य को देर तक जीवनपर्यन्त देखता रहूँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - जल रोग को दूर करनेवाले औषध को देता है साथ ही सूर्य को देखने की शक्ति को लुप्त नहीं होने देता-दृष्टि को बढ़ाता है-आँखों में मार्जन आदि करने से। इसी प्रकार आप्त विद्वान् अपने सत्सङ्ग-उपदेश से दोषों को दूर करते हैं और अध्यात्मदृष्टि देते हैं ॥७॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) हे आपः ! (मम तन्वे) मम शरीराय (वरूथं भेषजम्) रोगनिवारकमौषधं (पृणीत) दत्त-प्रयच्छत “पृणातिर्दानकर्मा” [निघ० ३।२०] येन (ज्योक् च सूर्यं दृशे) चिरकालपर्यन्तं यावज्जीवं सूर्यं पश्येयम् ॥७॥